भारतीय संविधान राष्ट्र की आधारशिला
ग्रेनविल ऑस्टिन
अनुवाद : नरेश गोस्वामी
प्रस्तुति कृति से पहले भारतीय संविधान से सम्बन्धित अधिकांश लेखन संविधान के नीरस प्रावधानों में उलझ कर रह जाता था। यह तात्कालिकता और वर्णनात्मकता से आक्रान्त एक ऐसा लेखन था जिसमें एक दस्तावेज़ के रूप में संविधान की ऐतिहासिक पूर्व-पीठिका, संविधान सभा की उग्र बहसों के आग्रह-दुराग्रह और चिन्ताएँ अनुपस्थित थीं। इस तरह ग्रेनविल ऑस्टिन की इस रचना ने भारत में संवैधानिक अध्ययन की धारा को एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान किया।
भारतीय संविधान की निर्माण-प्रक्रिया, उसके अवधारणात्मक आधार तथा उसकी लोकतान्त्रिाक परिणति से लेकर केन्द्र सरकार के स्वरूप, नागरिक अधिकारों, संघ और राज्य के आपसी सम्बन्धों, न्यायपालिका की भूमिका तथा भाषा के असाध्य विवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर विमर्शी दृष्टि डालती यहकृकृति सिर्फ औपनिवेशिक सत्ता का भाष्य न लिख कर यह दिखाती है कि इन मसलों के सम्बन्ध में भारतीय पक्ष के विभिन्न धड़े क्या सोच रहे थे।
अपने समय के प्रकाशित-अप्रकाशित दस्तावेज़ो के अलावा संविधान सभा के सदस्यों के विस्तृत साक्षात्कारों तथा लेखक द्वारा जुटाये गये अन्य प्राथमिक स्रोतों पर आधारित यह रचना आज एक क्लासिक की हैसियत रखती है।
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नरेश गोस्वामी ने मेरठ और दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की है। उन्होंने ‘हिन्दी समाज विज्ञान कोश’ (सं. अभय कुमार दुबे) में लगभग पैंसठ लेखों का योगदान दिया है और ग्रेनविल ऑस्टिन,स्टुअर्ट हॉल, जोशुआ फिशमैन, बृजबिहारी कचरु आदि पर परिचयात्मक लेखन भी किया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके कुछ प्रमुख शोध-लेख और समीक्षाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। धर्म और राजनीति के अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन उनके शोध का मुख्य विषय है। सम्प्रति वे विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस, दिल्ली) द्वारा प्रकाशित शोध-जर्नल ‘प्रतिमान’ में सहायक सम्पादक हैं।
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