पढ़िए आशुतोष नाड़कर के
नये उपन्यास ‘शकुनि : पासों की महागाथा’ से रोचक अंश
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"महाभारत एक ऐसी महागाथा है, जो कई मायनों में अद्भुत है। इसका हरेक पात्र अपने आप में बेहद अहम है और उसका अपना दृष्टिकोण है। यही वजह है कि महाभारत की मूल कथा को आधार बनाकर कथाकारों ने श्रीकृष्ण से लेकर भीष्म, कुन्ती, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, कर्ण, द्रौपदी, गान्धारी, दुर्योधन, द्रोण, अश्वत्थामा आदि के चरित्र पर आधारित कथा व उपन्यास लिखे हैं। लेकिन इस महागाथा के एक बेहद अहम पात्र 'शकुनि'की न केवल अनदेखी की गयी है वरन् उसका चित्रण केवल और केवल खलनायक के रूप में ही किया गया है। हर खलनायक में एक नायक छुपा होता है, उसी प्रकार शकुनि के चरित्र का भी यदि सूक्ष्म अवलोकन किया जाये तो कई ऐसी बातें उभरकर आती हैं जो न केवल उसके चरित्र की नकारात्मकता को कम करती हैं, बल्कि कई बार तो उससे सहानुभूति भी होने लगती है। ये उपन्यास शकुनि को नायक के रूप में प्रस्तुत नहीं करता वरन् महाभारत की अहम घटनाओं को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास है।"
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जानता हूँ कि प्रतिज्ञा और प्रतिशोध में काफ़ी भेद होता है, लेकिन मेरे लिए तो प्रतिशोध ही मेरी प्रतिज्ञा और प्रतिज्ञा ही मेरा प्रतिशोध था। मेरा शत्रु विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी योद्धा था और मैंने तो धनुष से शशक के आखेट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं किया था। मेरे मन में प्रश्न उठा-‘शकुनि, तेरे पास ऐसी कौन-सी योग्यता है, जिसके बल पर तू भीष्म से प्रतिशोध ले सके? जिस काल में तुझे शस्त्र-विद्या का प्रशिक्षण लेना चाहिए था, वह काल तूने चौसर खेलने में व्यर्थ गँवा दिया। भले ही चौसर के पासे तेरे इशारों पर नाचते हों, लेकिन क्या ये पासे भीष्म के धनुष का मुक़ाबला कर सकेंगे?’ मेरे मन में जन्मे नये शकुनि ने उत्तर दिया- ‘क्यों नहीं कर सकेंगे। यदि हस्तिनापुर की राजनीति की चौसर मेरे अनुसार बिछायी गयी तो एक दिन यही पासे भीष्म के धनुष की काट बन सकते हैं।’
मैंने सोच लिया कि हस्तिनापुर की राजनीतिक चौसर की गोटियाँ अब मैं ही तय करूँगा। इसके लिए मेरा हस्तिनापुर में रहना आवश्यक था। परम्परा के अनुसार बहन की ससुराल में रहना किसी भी भाई के लिए सम्मानजनक नहीं माना जाता, लेकिन मैं अब तक अपमान का वह विष पी चुका था, जिसके प्रतिशोध के लिए मैं इस प्रकार के सहस्रों अपमानों को झेलने के लिए तैयार था। जिस युवराज शकुनि को कल गांधार के राजसिंहासन पर विराजित होना था, उसी शकुनि ने अपना राज्य, अपने माता-पिता, पत्नी और पुत्रों को छोड़कर गांधारी के साथ हस्तिनापुर जाने का निर्णय ले लिया। इस दिन गांधार के युवराज के रूप में पहचाने जाने वाले शकुनि की मृत्यु हो गयी और जन्म हुआ एक ऐसे शकुनि का, जो केवल गांधारी का भाई था। जिसका केवल एक ही ध्येय था, भीष्म और उसके वंश का नाश। भीष्म ने मुझे, मेरे पिता, मेरी बहन और मेरे गांधार को जो पीड़ा पहुँचायी थी, उससे कहीं अधिक पीड़ा भीष्म को देना मेरे जीवन का लक्ष्य था। अपने ध्येय की सफलता के लिए ये शकुनि अधर्म, असत्य, षड्यंत्र और कपट जैसे हथकंडे अपनाने के लिए सहर्ष तैयार था।
विश्व के भीषणतम संग्राम का एक महान योद्धा
जो न तो कोई बाहुबली था...
और न ही उसके पास था किसी दिव्य अस्त्र या शस्त्र का बल..
फिर भी टकरा गया तीनों लोकों के स्वामी से...
जानिए, पासों के इस महारथी को..
एक बिलकुल नए नज़रिए के साथ...
मैंने सोच लिया कि हस्तिनापुर की राजनीतिक चौसर की गोटियाँ अब मैं ही तय करूँगा। इसके लिए मेरा हस्तिनापुर में रहना आवश्यक था। परम्परा के अनुसार बहन की ससुराल में रहना किसी भी भाई के लिए सम्मानजनक नहीं माना जाता, लेकिन मैं अब तक अपमान का वह विष पी चुका था, जिसके प्रतिशोध के लिए मैं इस प्रकार के सहस्रों अपमानों को झेलने के लिए तैयार था। जिस युवराज शकुनि को कल गांधार के राजसिंहासन पर विराजित होना था, उसी शकुनि ने अपना राज्य, अपने माता-पिता, पत्नी और पुत्रों को छोड़कर गांधारी के साथ हस्तिनापुर जाने का निर्णय ले लिया। इस दिन गांधार के युवराज के रूप में पहचाने जाने वाले शकुनि की मृत्यु हो गयी और जन्म हुआ एक ऐसे शकुनि का, जो केवल गांधारी का भाई था। जिसका केवल एक ही ध्येय था, भीष्म और उसके वंश का नाश। भीष्म ने मुझे, मेरे पिता, मेरी बहन और मेरे गांधार को जो पीड़ा पहुँचायी थी, उससे कहीं अधिक पीड़ा भीष्म को देना मेरे जीवन का लक्ष्य था। अपने ध्येय की सफलता के लिए ये शकुनि अधर्म, असत्य, षड्यंत्र और कपट जैसे हथकंडे अपनाने के लिए सहर्ष तैयार था।
विश्व पुस्तक मेला 2020 के दौरान आने वाली किताब