प्रख्यात कथाकार अलका सरावगी के जन्मदिवस पर पढिये ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए' का रोचक अंश
विजयनगर कैम्प ज़्यादा दूर नहीं था। कुलभूषण ने देखा कि शाम होने लगी है। अब रात को पिताजी को लेकर रेल नहीं पकड़ सकेगा। उसे रात यहीं गुज़ारनी होगी। वह लम्बे-लम्बे क़दम रखता बताये हुए रास्ते पर चल पड़ा। उसे दूर से ही टीन की दीवार और टीन की ही छत से बनी हुई झोपड़ियाँ दिखाई पड़ीं। दोनों तरफ़ खेतों के बीच ऊँची-सी जगह पर, जो शायद कोई स्कूल का मैदान रहा होगा, बहुत-सी झोंपड़ियाँ लाइन से बनी हुई थीं। उनके पीछे सैकड़ों तम्बू ज़मीन में कुछ दूरी पर गड़े नज़र आ रहे थे। यह दृश्य दिखाई देते ही एक अजीब-सी दुर्गन्ध ने कुलभूषण को जकड़ लिया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे दुर्गन्ध बढ़ती जा रही थी। तभी उसे रास्ते में एक कटा हुआ आधा हाथ दिखाई पड़ा जिसमें एक लोहे का कड़ाऔर शंख की बनी बंगाली सुहागिनों की सफ़ेद चूड़ी थी। वह एक मिनट के लिए ऐसे ठिठककर खड़ा हुआ जैसे उसने प्रेत देख लिया हो। अचानक उसे एहसास हुआ कि शाम गहराती जा रही है और कैम्प के चारों तरफ़ सियार बोल रहे हैं। उसे यह भी समझ में आ गया कि वह हाथ कच्ची मिट्टी में दफ़नाई किसी औरत का है, जिसे सियारों ने खाने के लिए निकाल लिया है।
वह दौड़ता हुआ झोंपड़ियों की तरफ़ बढ़ने लगा। दुर्गन्ध को वह जैसे भूल गया। झोंपड़ियों के पास आकर उसने देखा कि वह कैम्प के कर्मचारियों का दफ़्तर था। रायपुर के माना कैम्प की तरह यहाँ भी लोगों की भीड़ लगी हुई थी और नाम पुकार कर चावल, गेहूँ, दाल, तेल और कुछ रुपये दिये जा रहे थे। कुलभूषण को लगा जैसे हू-ब-हू यही दृश्य उसके जीवन में पहले घट चुका है। इस दृश्य और उस पहलेवाले दृश्य में रत्तीभर भी अन्तर नहीं था। वह भीड़ के पीछे खड़ा होकर उचककर आगे देखने लगा। किसी से कैसे पूछा जाये कि उसके पिता गिरधारी लाल जैन किस तम्बू में मिलेंगे? जब उसेलगा कि वहाँ आगे तक पहुँचना नामुमकिन है, तो वह तम्बुओं की तरफ़ चल पड़ा। एक तम्बू में कई परिवारों के लोग भरे थे। चारों तरफ़ गन्दगी ही गन्दगी थी। उल्टी, मलमूत्र, जूठन फेंकी हुई थी। कई लोग तम्बू के बाहर बैठे सिर पर हाथ रखे जाने कहाँ देख रहे थे। कोई औरत अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। कोई अपने बच्चे के सिर पर बार-बार हाथ रखकर उसका बुखार देख रही थी। बच्चे एकदम नंगे थे। बूढ़े अधनंगे से, कमर पर गमछा या लुंगी लपेटे थे। ज़्यादातर औरतें अधेड़ उम्र की थीं जो अपनी गोद के बच्चों की दादी या नानी लग रही थीं। ये सारे बेसहारा लोग जाने कितने भरे-पूरे अनाज के खेतों और घरों को छोड़कर इस गँधाते नरक में आ पड़े हैं।
कुलभूषण ने देखा कि एक अधेड़ औरत कच्ची लकड़ी जलाकर एल्युमिनियम की हाँडी में चावल पकाती उसे हर तम्बू में जाते घूर रही है। वह रुक गया। ईस्ट बंगाल की बांग्ला में उसने पूछा-“कहाँ से आ रही हो माँ?""कुष्टिया के दौलतपुर से"-उस औरत ने छोटा-सा जवाब दिया और वापस हाँडी में उबलते पानी को देखने लगी।“साथ में कौन है माँ?"-कुलभूषण ने फिर पूछा। औरत ने कहा-“बूढ़ा ससुर है। घर जला दिया। मेरे आदमी को गोली मार दी। बहू को उठा ले गये। बेटा मुक्तिवाहिनी में चला गया।"कुलभूषण चुप रहा। औरत चावल को चम्मच से चलाकर देख रही थी। उसकी आँखों में आँसू का नामोनिशान नहीं था।"मैं अपने पिता को खोज रहा हूँ। उनका नाम गिरधारी लाल जैन है"-कुलभूषण ने एक गन्दे आवारा कुत्ते को दुरदुराते हुए कहा जो उसके पैंट पर अपना मुँह लगा रहा था।“अच्छा वो मारवाड़ी! तभी तो कहूँ। देखने में ठीक तुम्हारी तरह है ना! वही तो उधर, उस तम्बू में है। उल्टी-टट्टी कर रहा है दो दिन से" -औरत ने बिना सिर उठाये अँगुली से एक तम्बू की ओर इशारा किया।
कुलभूषण धड़कते दिल से उस तम्बू की ओर बढ़ा। क्या सचमुच उसमें पिताजी और श्यामा होंगे? उसने तम्बू का पर्दा हटाया तो देखता-का-देखता रह गया। मोहम्मद इस्लाम सात साल बाद भी वैसा-का-वैसा लग रहा था। उसकी गोद में पिताजी का सिर था और वह उनकी छाती पर हाथ रखे हुए कुछ बुदबुदा रहा था। तम्बू के एक कोने में छह-सात साल की एक लड़की मैली फ्रॉक पहने बड़ी-बड़ी आँखों से यह दृश्य देख रही थी। कुलभूषण को देखते ही उस छोटे से तम्बू में जैसे भूकम्प आ गया। पिताजी उठकर बैठ गये और ज़ोर-ज़ोर से, “बेटा आ गया। मेरा बेटा आ गया"-दोहराते हुए रोने लगे। उनकी आवाज़ में इतना दम देखकर कुलभूषण को तसल्ली हुई कि वे मरनेवाले नहीं हैं।
किसी तरह उसने पिताजी को चुप कराया। सबके कुशल-मंगल की सूचना दी। पता चला कि तीन-चार घण्टों से पिताजी को उल्टी-दस्त होना रुक गया है। उनके बगल में दवा-पानी का इन्तज़ाम और तम्बू के अन्दर किसी तरह की गन्दगी न देखकर कुलभूषण ने आँखों-ही-आँखों में मोहम्मद इस्लाम का शुक्रिया अदा किया। कोने में बैठी लड़की अब उसे एकटक देखने लगी थी। कुलभूषण ने उसकी तरफ़ देखा और एक पल में ही अमला की आँखें पहचान लीं। उसने मोहम्मद इस्लाम की तरफ़ सवालिया निगाहों से देखा।
मोहम्मद इस्लाम ने लड़की को आवाज़ दी–“मल्ली।"वह उठ खड़ी हुई और उसने आगे आकर कुलभूषण के गले में बाँहें डाल दीं और कहा -“भूषौन काका!"उसकी आवाज़ की मिठास से कुलभूषण सराबोर हो गया। फिर उस छोटी-सी लड़की ने कहा -"मेरे बाबा का नाम श्यामा है और मेरी माँ का नाम अमला है। माँ ने कहा है कि जब आप मिल जायेंगे तबसे मैं आपको बाबा बोलूँगी और पुरानी सारी बातें भूल जाऊँगी।"इसके बाद उसने अपने गले में पड़ा कपड़े में बँधा ताबीज़ दिखाया और कहा-"माँ ने कहा है कि यह आपने बाबा को दिया था। इसे आपके सिवाय किसी को नहीं देना है। "कुलभूषण के शरीर का एक-एक रोम उस लड़की के प्रति प्रेम से भीग रहा था। उसने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और पीछे से उसका उलझे हुए बालों का माथा चूमता रहा। अचानक उसने देखा कि पिताजी उसे गुस्से से घूर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे वे किसी गरीब-गुरबे से बातें करते हुए उसे देखते थे। इसका मतलब है कि उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक है। यह सोचकर वह बेमौसम हँस पड़ा।