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Mass Media Aur Samaj / मास मीडिया और समाज

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Book - Mass Media Aur Samaj


 Author - Manohar Shyam Joshi


 Publisher - Vani Prakashan 

Total Pages : 124
ISBN : 978-93-5072-699-0(HB)
Price :  Rs.250/- (HB)
Size (Inches) : 5.50"X8.50"
First Edition : 2014
Category  : Media


पुस्तक के संदर्भ में -

मनोहर श्याम जोशी को हिन्दी के प्रमुख पत्रकार-सम्पादक के रूप में भी याद किया जाता है। करीब 16 साल तक उन्होंने ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ का सम्पादन किया और बीसवीं शताब्दी के सत्तर के दषक में उन्होंने हिन्दी-पत्रकारिता के नये मानक गढ़े। नब्बे के दशक के बाद जिस पत्रकारिता को ‘इन्फोटेनमेंट’ के नाम से जाना गया उसके बीज वास्तव में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में ही पड़े थे। इसके अलावा, उन्होंने रेडियो-टेलीविजन की पत्रकारिता भी प्रमुखता से की। वे एक तरह से पत्रकारिता के सभी माध्यमों के माहिर विशेषज्ञ थे। टी.वी. के आरम्भिक धारावाहिक-लेखक तो थे ही। ‘मास मीडिया और समाज’ पुस्तक एक ऐसे ही माहिर विशेषज्ञ की डायरी की तरह है। समय-समय पर उन्होंने इन माध्यमों को लेकर जो टिप्पणियाँ कीं, उसके भूत-भविश्य को लेकर जो टीपें दीं, उसके कार्यकलापों पर जो टिप्पणियाँ कीं, पुस्तक में उनको संकलित किया गया है। माध्यम-माध्यम उनकी दृष्टि उस माध्यम में हिन्दी की स्थिति पर रहती थी। पुस्तक में ऐसे लेख हैं जिनसे माध्यमों की हिन्दी पत्रकारिता की स्थिति का पता चलता है। एक लेख हिन्दी समाज में मास मीडिया के महत्त्व-अमहत्त्व को लेकर है। हर लिहाज से, पुस्तक अध्येताओं, शोधकर्ताओं, मीडिया विशेषज्ञों के लिए समान महत्त्व की है। मनोहर श्याम जोशी के अनुभव और सूझ का सुन्दर संयोग इस पुस्तक में बन पड़ा है। -प्रभात रंजन


लेखक के संदर्भ में -

 
मनोहर श्याम जोशी
 मनोहर श्याम जोशी 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की खातिर छात्रा जीवन से ही लेखक और पत्राकार बन गये। अमृतलाल नागर और अज्ञेय इन दो आचार्यों का आषीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोजगारी के अनुभव बटोरने के बाद अपने 21वें वर्श से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गये। प्रेस, रेडियो, टी.वी., वष्त्तचित्रा, फिल्म, विज्ञापन-सम्प्रेशण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विशय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता चला आया है। पहली कहानी तब छपी थी जब वह अठारह वर्श के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्श के होने आये। केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से होते हुए सन् 1967 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक बने और वहीं एक अंग्रेजी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविजन धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् 1984 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से स्वतन्त्रा लेखन करते रहे । निधन: 30 मार्च 2006।

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