कबीर की चिंता के मानवीय आयाम
बलदेव वंशीकी पुस्तक 'कबीर की चिंता'में कबीर के कर्मवाद के साथ-साथ उनके सहजयोग और राजयोग का भी विवेचन कियागया है। चूँकि कबीर जीवन और धड़कन के गायक हैं इसलिए इस पुस्तक में लेखक ने उनके जीवन की झाँकी के साथ-साथ पाठकों को कबीर के चिंतन और दर्शन की यात्रा भी कराई है। कबीर में दिलचस्पी रखने वाले किसी भी पाठक के लिए यह पुस्तक बेहद उपयोगी है।
लेखक की यह चिन्ता जायज़ है कि आज कुछ चिंतक और विद्वान कबीर को नकारना चाहते हैं, उन्हें कमतर आंकना चाहते हैं। उसने कबीर के एक विवेकशील भक्त की तरह एक-एक बिन्दु पर गहनता से विचार किया है, और यह प्रस्तावित किया है कि कबीर को साम्प्रदायिक और राजनीतिक मतवादों के आलोक में नहीं पढ़ना चाहिए।
लेखक का एक आह्वान यह भी है कि वर्तमान में मानवता पर मंडराते हुए संकट से केवल संत और उनकी शिक्षाएँ ही हमें बचा सकती हैं, और इस अर्थ में कबीर से बड़ा और कोई नजर नहीं आता। प्रस्तुत पुस्तक में कबीर के माध्यम से लेखक की जो चिंता सामने आती है, वास्तव में वह हमारे समय की एक मानवीय चिंता ही है। इस अर्थ में 'कबीर की चिंता'पुस्तक का एक मानवतावादी पाठ भी किया जा सकता है।
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