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बा के जन्मदिन पर विशेष : बापू के पत्र बा के नाम

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बा के जन्मदिन पर विशेष : बापू के पत्र बा के नाम 

दुनिया के सारे घर औरतों की सहनशीलता के कंधे पर बसे हैं। जिस दिन औरत कंधे झटक देगी वह घर भरभराकर गिर पड़ेंगे। यही कहानी है बालिका कस्तूरी की। पोरबन्दर के दीवान की बहू, मोहनदास गाँधी की पत्नी, हरिलाल,मनिदास, देवदास और रामदास की माँ, फिर महात्मा गाँधी की पत्नी और सबकी बा।

जीवन यात्रा के चिरन्तन संघर्ष में कहीं महात्मा के नाम को नहीं बिछाया, कभी बापू के नाम को नहीं ओढा। स्वयं की ज़िद और स्वाभिमान के साथ जीवन यात्रा पूर्ण की। ‘कस्तूरबा’  कस्तूरी के बा बनने की कथा है।
डॉ. संध्या भराड़े

प्रस्तुत है डॉ. संध्या भराड़े की पुस्तक ‘कस्तूरबा’ से महात्मा गाँधी के बा को लिखे कुछ पत्र जो न सिर्फ़ इन महान व्यक्तित्वों पर प्रकाश डालते हैं, इनके व्यक्तिगत जीवन की भी झलक दिखाते हैं

1
राजकोट सत्याग्रह के समय

                                                                                                                                          
                                                                     सेंगाव 
                                                                   08/02/39
बा,
      तू काफी तकलीउठा रही है। जो भी तकलीफ हो, उसकी बर मुझे जरूर देना। तू दुख सहने के लिए जन्मी है। इसलिए तेरी तकलीफों के बारे में अखबारों में कुछ भी नहीं देना है। भगवान तो वहाँ तेरे पास बैठा ही है। उसे जो करना होगा, वह करेगा। ‘कहानम' (कनु) मजे में है। रात को तुझे याद जरूर करता है। लेकिन फिकर न करना। अमतुलसलाम यहाँ है। वह कहानम को सँभालती है।

बापू के आशीर्वाद
 चि. मणि, तू वहाँ है यह कितनी अच्छी बात है।


2
                                                                                                                             सेगाव 09/02/39
बा,

       तेरा पत्र मिला, तू बीमार रहा करती है। यह अच्छा नहीं लगता। लेकिन अब तो हिम्मत के साथ रहना। सहूलियतें तो मिल ही जाएँगी और न भी मिलें तो क्या? मणि ठीक से गा न सके, तो भी रामायण सुनाये। राम-सीता के दुख की तुलना में हमारे दुख की क्या बिसात। तू घबराना मत। आजकल लड़कियों से सेवा लेना छोड़ रखा है। तू फिकर न करना। क्या करना चाहिए सो मैं देख लूंगा। सुशीला तो सेवा करती ही है।
बापू के आशीर्वाद

3

सेगाव 10/02/39
बा,
           डाक तेरे नाम रोज़ गई है। वहाँ चिट्ठियाँ न मिले तो क्या किया जाए। मेरी चिन्ताकरने की जरूरत नहीं। लेकिन तबीयत चिन्ता करने जैसी हो जाए तो भी मैंतुझसे इस जवाब की आशा रखता हूँ कि “वियोग में मृत्यु बदी होगी तो होकर रहेगी। लेकिन मैं तो जहाँ मेरे बच्चे त्रासपा रहे हैं वहाँ पड़ी हूं। मुझे जेल में रखोगे तो उसमें भो मैं खुश रहूँगी। ठाकुर साहब से वचन पलवाने में आप सब मेरी मदद करें। मेरा उपयोग करे वरना मैं चाहती हैं कि राजकोट के आँगन में मेरी मृत्यु हो जाए।” तू अपने आप अपनी खास इच्छा से गई है। इसलिए तेरे दिल से ये उद्गार निकले तो निकालना। अपने मन में यही धारणा रखना। तू रोज लिखती है कि लड़कियों की सेवा लिया करो। लेकिन फिलहाल तो वे आजाद ही हैं। सुशीला मालिश करती है, सो भी छोड़ना ही है। लेकिन अपनी ऐसी तबीयत की वजह से उसे अभी छोड़ नहीं सका हूँ। इस बारे में मेरी चिन्ता मत करना। मुझे निबाहनेवाला आखिर तो ईश्वर है ही।
बापू के आशीर्वाद

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बा,
        पिछली बार तुझे प्रवचन भेजा था। उसकी नकल भेजना। तेरा पत्र आज मिला। यह पत्र मौनवार के दिन लिख रहा हूँ। मणिलाल की चिन्ता मत कर। उसे तेरा पत्र भेज रहा हूँ। परागजी के कहने से घबरा उठने का कोई कारण नहीं। दोनों प्रौढ़ हैं। गलती हुई होगी तो सुधार लेंगे। ‘जामे जमशेद'का प्रबन्ध तो किया ही है। मथुरादास के लिखने से हो गया है। इसलिए मैंने ज्यादा कुछ नहीं किया। अब तो मिलता ही होगा फिर पूछताछ करता हूँ। रामायण और भागवत के लिए तजवीज करता हूँ। प्रेम लीला बहन से माँगने में तनिक भी संकोच मत करना। तुझे माँगना ही क्या है? जो थोड़ा बहुत चाहिए सो वे प्रेम से भेज देंगी। लेकिन जिसकी जल्दी ही जरूरत न हो वह तू मेरे मार्फत मॅगाएगी तो बस होगा। मैं तजवीज कर दूँगा। दाँत काम में लेती हो। लालपानी के कुल्ले करती हो। दूधाभाई की लक्ष्मी को भी छठा महीना चल रहा है। इस सम्बन्ध में मारुति का पत्र आज मिला। इन सब खबरों को सुनकर मुझे दुख या आश्चर्य नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए। ब्याह का यह नतीजा तो सबके लिए है ही। इसमें दुख क्या और आश्चर्य क्या।

रामदास को भी मैंने कोई उलाहना नहीं दिया। ऐसे मामले में उलाहना क्या करसकती है? सब अपनी शक्ति के अनुसार संयम पालें। संयम की यह बात भी अभी इधर-उधर की है, वरना लोग तो अपनी इच्छा के अनुसार भोग भोगते ही आए हैं।

ठक्कर बाप्पा इस समय मेरे साथ नहीं हैं। 5वीं को मिलेंगे। आजकल मलकानी  मेरे साथ है। वे तो खूब काम कर रहे हैं। और सब तो करते ही हैं। चंद्रशेखर की  तबीयत ठीक ही रहती है। ओम और किसन बराबर अपनी तबीयत कोसँभालते हैं। ओम भरसक मेहनत करती है। बहुत भोली और सरल है। किसन भी ऐसा  ही है। सुरेन्द्र को ताकत आ गई है। आन्ध्रप्रदेश की यात्रा तीसरी तारीख को पूरी होगी।उसके बाद मैसूर जाना होगा।

जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ धाँधली तो रहती ही है। परेशानी भी रहती है। मुझे तोसब सँभाल लेते हैं। इसलिए परेशानी कम मालूम होती है। छोटी-छोटी बात का ख्याल मीरा बहन रखती है। इसलिए मुझे यात्रा में तकलीफ नहीं होती। तू मुलाकात छोडे तो मुझसे हर हफ्ते पत्र पाएगी। मैं हर हफ्ते प्रवचन भेजता रहूंगा। तू दूसरी बहनों से मिल सकती है। इसी से सन्तोष मानना, लेकिन जैसी तेरी मर्जी में आए करना। न मुलाकात चाहेगी तो मिलने आनेवाले बहुत तैयार हो जाएंगे। जानबूझकर मुलाकातें कम रखने का रिवाज डाला है, लेकिन तू जो चाहे बिना संकोच के लिखना।

जानकी बहन की तबीयत ठीक है। उनके रामकृष्ण के टांसिल्स कटवाने की बात शायद मैं तुझे लिख चुका हूँ। कमला अब खाना लेने लगी है। किशोरी लाल को बुखार ने अभी छोड़ा नहीं लेकिन चिन्ता का कारण नहीं।

मेरा मौन आजकल रविवार की रात को शुरू होता है इसलिए सोमवार की रात तक नहीं बोलता। आज रात 9-10 पर मौन टूटेगा और उस वक्त शायद ही किसी से बोलने का कुछ काम पड़े। क्योंकि फिर तो सोने का समय हो जाएगा। सुबह तीन बजे उठना होता है। ब्रजकृष्ण का बुखार अब उतर गया है। ताकत आनी बाकी है। हेमी बहन गुजर गई है।

अब प्रवचन :
पिछली बार भक्त के लक्षण लिखे थे। यह भी सूचित किया था कि सेवा के बिना भक्ति नहीं होती। इस बार सेवा कैसे की जाए सो लिखता हूँ। क्योंकि लोग अक्सर सवाल पूछते हैं। कुछ कहते हैं सेवा अमुक स्थिति में ही हो सकती है। कुछ कहते हैं, अमुक अभ्यास करने पर ही सेवा हो सकती है। यह सब भ्रम है।

इतना तो पिछले हफ्ते ही लिख चुका था। आदमी किसी भी हालत में रहकर सेवा कर सकता है। हमारे पास जितनी भी शक्ति हो सो हम सब कृष्णार्पण कर दें तो हमें पूरे नम्बर मिल जाएँ। जिसकी शक्ति करोड़ देने की है पर जो आधा करोड़ करा देता है उसे 50 नम्बर से ज्यादा नहीं मिलेंगे। लेकिन जिसके पास एक पाई है। वह उसे भी दे डालता है तो उसे सौ में से सौ पूरे नम्बर मिलेंगे।

तुम  वहाँ रहनेवाली बहनों और सम्पर्क में आनेवाली बहनों और अधिकारियों के साथअच्छा व्यवहार करो तो समझा जाएगा कि तुमने सेवा धर्म का पालन किया। अधिकारियों के साथ सेवाभाव से बरतने का मतलब है कभी उनका बुरा न चाहना, उनके साथ विनय का पालन करना, उन्हें धोखा न देना। नियमों का पालन करना और तुम्हारे सम्पर्क में आनेवाली गुनाहों के लिए सजा पाई हुई बहनों के साथ सगी बहन-सा व्यवहार करना।

उन पर तुम्हारे प्रेम की छाप पड़े। वे तुम्हारी पवित्रता को पहचानें तो वह भी सेवाधर्म का पालन कहा जाएगा। दोनों में हेतु अच्छा होना चाहिए। स्वार्थ के कारण या डर की वजह से जो अच्छा व्यवहार किया जाता है, वह सेवा में शुमार नहीं होता। एक काम, एक आदमी स्वार्थ साधने के लिए करता है और दूसरा परमार्थ की दृष्टि से करता है। सो तो हम भी अक्सर देखते ही हैं।

जहाँ ईश्वर अर्पण भाव है वहाँ स्वार्थ का कोई स्थान नहीं है। इस प्रकार सेवा करनेवाला रोज अपनी शक्ति बढ़ाता है। वह अभ्यास करता है। उद्यम करता है सो भी सेवा के विचार से ही। इस प्रकार जो सेवा परायण रहता है उसके हँसने, खेलने, खाने, पीने में सेवा भाव भरा रहता है। अर्थात् उसके सब कामों में निर्दोषता होती है। ऐसे भक्तों को परमात्मा सब आवश्यक शक्ति दे देता है। इससे सम्बन्ध रखनेवाले तीन श्लोक स्त्रियों की प्रार्थना में हैं। सो तुम्हें याद होंगे :

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
मच्चिता मद्गत्प्राणा बोधयन्तः परस्परम्
कथयन्तश्च मां नित्यं, तुष्यन्ति रमन्ति च
 तेषां सतत युक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥

इन श्लोकों का अर्थ अनासक्ति योग में देख लेना। ये श्लोक 9वें, 10वें अध्यायों में मिलेंगे। याद रहे कि गीताजी को हम अपने अमल में लाने के लिए पढ़ते हैं। यह समझना कि ऊपर मैंने जो लिखा है सो सब गीताजी के आधार पर लिखा है।
बापू का सबको आशीर्वाद

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13/02/34
बा,
यह पत्र ट्रेन में लिख रहा हूँ। तेरा पत्र मिला है। काम इतना था कि मंगलवार को लिख न सका। आज गुरुवार को लिख रहा हूँ। तू जो तेरी मर्जी में आवे, वह कामुझे सौंपना। जो चाहे सो सवाल पूछना। मैं उसे पूरा करूंगा। कोशिश तो करूंगा ही। तुने हरिलाल के बारे में पूछा है। वह पाण्डिचेरी गया था। वहाँ भी पैसों की भी माँगकर खूब शराब पीता था। कुछ पैसे मिले भी। आजकल कहाँ है पता नहीं। उसक यों ही चलेगा। ईश्वर उसे सुबुद्धि दे तब सही।

हरिलाल के गर्भ के समय में कितना मूढ़ था। हमारे पाप-पुण्य भी तो काम करते हैं। जैसा मैंने और तूने किया है, वह तो भरना ही होगा। इस तरह बच्चों के आचरण के लिए माँ-बाप जिम्मेदार हैं। हम यही कर सकते हैं कि हम शुद्ध बनें तो वह कोशिश हम कर ही रहे हैं। हमारी शुद्धता का प्रभाव जाने-अनजाने हरिलाल पर पड़ता ही होगा।

इधर मनु का पत्र नहीं लेकिन जमनादास ने उसकी खबर दी थी। सुशीला को लिखूँगा। पुरुषोत्तम की सगाई हरखचन्द की लड़की के साथ हो गई है। पुरुषोत्तम की तबीयत अभी अच्छी नहीं कही जा सकती। रणछोड़ भाई के भाई की पत्नी गुजर गई है। इससे मोती बहन उदास रहती है। उनकी जवाबदारी बढ़ी है। अम्बालाल भाई और मृदुला मुझसे मिल गए। अम्बालाल भाई और सरला बहन विलायत जा रहे हैं। तीन-चार महीने वहाँ रहेंगे।

देवदास, लक्ष्मी ठीक हैं। क्या लक्ष्मी को बच्चों का बोझ उठाना कठिन मालूम होता है। रामदास-नीमू ठीक हैं। उन दोनों को तेरे पत्र की नकल भेजता हूँ। असल पत्र मणिलाल को भेज रहा हूँ। नकल वल्लभभाई को भी भेजी है। वे चिन्ता करते हैं।

माधवदास का अभी तक कोई जवाब नहीं आया। मथुरादास मेरे साथ हैं। एक-दो दिन रहकर बम्बई जाएँगे। एस्थर मेनन विलायत से आ गई है। वह मुझे मिल गई। मिस लेस्टर लंका गई है। कल मद्रास की यात्रा समाप्त करके राजाजी चले गए। वे दिल्ली जाएँगे सही। अमतुलसलाम को अभी कमजोरी बाकी है। इसलिए उसे मद्रास छोड़ आया हूँ। राजाजी उसे सँभालेंगे। तुझे पूनियाँ मिल गई होंगी। जब खत्म हो जाएँ तो फिर लिखना, भेज दूँगा।

कुसुम का भाई जंगबहार में मर गया। इसका उसे काफी दुख हुआ है। प्यारे लाल कल छूटे । किशोरीलाल देवलाली है। कुछ ठीक है। लक्ष्मी की प्रसूति बारडोली में होगी। मंजुकेशा उसकी सार सँभाल रखेगी। मोती या लक्ष्मी भी वहाँ होगी। नानी बहन झवेरी का अड़चन के लिए ऑपरेशन हुआ है। अब तो काफी खबरें दे दी हैं। 9वीं तारीख को हैदराबाद से चलकर मैं पटना जाऊँगा। राजेन्द्र बाबू ने। बुलाया है। प्रभावती वहीं है। मुमकिन है कि बिहार में काफी रहना पड़ जाए।

तुम सब बहनों को बापू के आशीर्वाद
पेशावर 7/10/36

(पत्र 'कस्तूरबा'पुस्तक से)


'कस्तूरबा'पुस्तक यहाँ पाएँ http://www.vaniprakashan.in/details.php?prod_id=8749&title=KASTOORBA

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