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जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद : जनाकांक्षा की अभिव्यक्ति के लिए बुनियादी पहल (लेखक : राकेश कुमार योगी)

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कुछ ही दिनों में दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा, पाठकों को सुलभ विश्व पुस्तक मेला 2020 नयी दिल्ली में शुरू होने जा रहा है वाणी प्रकाशन के ब्लॉग पर प्रस्तुत हैं कुछ ख़ास पुस्तकों के प्रीव्यू जो पुस्तक मेले में आप सभी के समक्ष होंगी।

प्रस्तुत है राकेश कुमार योगी की पत्रकारिता व राजनीति पर आधारित नयी पुस्तक जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद : जनाकांक्षा की अभिव्यक्ति के लिए बुनियादी पहल का प्रीव्यू


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जनतन्त्र की मूल अवधारणा में ही संवाद है, व्यक्ति का व्यक्ति से संवाद, व्यक्ति का समाज से संवाद, व्यवस्था का व्यक्ति और समाज से संवाद, इसी प्रकार तो जनतन्त्र का विकास हुआ है। इसलिए श्रेष्ठ लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ संवाद की असीमित सम्भावनाओं को तलाशती हैं और इसके लिए रास्ते बनाती हैं। भारत में जाति, क्षेत्र, समाज की अनौपचारिक पंचायतों और चुनी हुई ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक सब व्यवस्थाओं के केन्द्र में संवाद ही है। आदर्श जनतन्त्र में न केवल शासन में आमजन की सीधी हिस्सेदारी होती है बल्कि इस हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर निरन्तर संवाद की सुविधा होती है। जनतन्त्र में विभिन्न स्तरों पर संवाद का होना उसे अधिक मज़बूत बनाता है और संसदीय संवाद इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। जनप्रतिनिधियों, विधानसभा या संसद के सदस्यों के बीच संवाद, महज़ कुछ व्यक्तियों के बीच होने वाला प्रश्नोत्तर नहीं है बल्कि यह सम्पूर्ण देश का संवाद है।
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जब मैं स्पीकर था,तो विपक्ष के बहुत बड़े-बड़े लोग थे मेरे सामने,जिनमें से कुछ प्राइम मिनिस्टर भी बने जैसे वाजपेयी जी, चन्द्रशेखर,वी. पी. सिंह,शरद यादव सभी थे। जो उस समय बजट आया हुआ था इन्होंने उसका विरोध किया,और मैं बार-बार हाउस को एडजॉन कर रहा था। हमारे लोग बोल रहे थे कि इनको बाहर निकालो,मैंने मना किया। फ़ाइनेन्स मिनिस्टर भी मुझसे पूछने लगे कि बजट कैसे पास होगा?तब आचार्य तुलसी जी ने वाजपेयी जी से बोला कि क्या हो रहा है ये और सदन में बार-बार ऐसा होना ठीक नहीं है। वाजपेयी जी की मुझे बहुत याद आती है क्यूँकि मुसीबत के वक़्त पर वो हमेशा ऐसे ही साथ होते थे। वाजपेयी जी मेरे पास आये और बोले कि कैसे स्पीकर हो तुम,न तो बजट पास कर रहे हो न हमें निकाल रहे हो। मैंने कहा कि जरूरत होगी तो मुझे निकालना पड़ेगा ही बाहर। उन्होंने बोला मुझे कि मैं ऐसा होने नहीं दूँगा क्यूँकि मैं बजट पास करवा दूँगा। और फिर दूसरे दिन बजट पास हो गया। ये डायलॉग हो गया। इसकी ख़ासियत यही है कि एक-दूसरे को सुनना बहुत ज़रूरी होता है संवाद में।

सदन के अन्दर ज़ीरो आवर (शून्य काल) लोहिया जी ने,फर्नांडीज़ जी ने शुरू किया था। इसका मतलब होता है कि स्पीकर को नोटिस देना ज़रूरी नहीं है,उसके बिना भी आप चर्चा कर सकते हो। मगर ऐसा विधानसभा और विधान परिषद में नहीं होने देते थे हम। अगर अचानक से कोई घटना हो जाये तो स्पीकर को नोटिस दिया जाता था और उन्हें ऐसा लगता था कि इस पर चर्चा की जानी चाहिए तो वो चर्चा हम करते थे। सदन में ये ज़ीरो आवर के टाइम में बड़ी मुश्किल हो जाती थी। सुबह की जो अवधि होती है वो प्राइवेट मेम्बर की तरह होती है,क्वेश्चन आंसर होते हैं,और उसके बाद फिर ज़ीरो आवर की एक्टिविटी होती है,फिर जो टेबल पर पेपर रखने होते हैं वो रख देते हैं। लोकसभा और राज्यसभा में सरकार का काम इस समय सिर्फ़ इतना होता है, ज़्यादा काम सरकार का दिन में होता है। मगर विधान सभा में सरकार का ज़्यादा काम ज़ीरो आवर न होने की वजह से आसानी से सुबह ही होता है। देखा जाये तो क़ानून के अन्दर,रुल्स के अन्दर ज़ीरो आवर की कोई बात नहीं है। ये अनौपचारिक रूप से चलता है अभी भी। 
शिवराज पाटिल, पूर्व अध्यक्ष, लोकसभा



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