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चिट्टी ज़नानियाँ : जीवन के अनछुए पहलुओं (लेखक : राकेश तिवारी)

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कुछ ही दिनों में दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा, पाठकों को सुलभ विश्व पुस्तक मेला 2020 नयी दिल्ली में शुरू होने जा रहा है वाणी प्रकाशन के ब्लॉग पर प्रस्तुत हैं कुछ ख़ास पुस्तकों के प्रीव्यू जो पुस्तक मेले में आप सभी के समक्ष होंगी।

प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार राकेश तिवारी के नये कहानी संग्रह चिट्टी ज़नानियाँ : जीवन के अनछुए पहलुओं की कहानियाँ का रोचक अंश 

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"राकेश तिवारी की कहानियों में क़िस्सागोई बहुत रोचक है। उस क़िस्सागोई के साथ उनकी भाषा में खिलंदड़ापन भी है। उनकी कहानियों में स्त्रियों का जो चरित्र आया है उसमें स्त्रियों का आक्रोश सामने आया है। स्त्रियों का कड़ा संघर्ष है। उनकी तेजस्विता दिखाई देती है। इसके साथ हास्यास्पद स्थितियाँ काफ़ी हैं। सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत है। गम्भीरता के बीच में वह ह्यूमर गम्भीरता को और भी तीव्र करता है। भाषा पर लेखक का अधिकार है। इतना गठा हुआ गद्य कम पढ़ने को मिलता है।"   

प्रो. नामवर सिंह
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मैं बुरी तरह डर गया। मेरे हाथ से चाय का कप गिरते-गिरते बचा। छोटी बुत फिक्क-से हँसी। बड़ी बहन ने उसे घूरकर देखा तो वह सहम गयी। हँसी ग़ायब। बूढ़ी औरत की नज़रें सीधे दरवाज़े पर टिकी थीं। वह गरदन नहीं हिला रही थी। शायद उसने मुझे देखा भी नहीं। उसके आगे के दो दाँत टूटे थे और बाल भुट्टे के बालों जैसे छितरे हुए थे। चेहरे पर इतनी झुर्रियाँ  थीं जैसे बासी सेब हो। वे चारों ही हद से ज़्यादा गोरी थीं। लेकिन रक्तहीन। मुझे ज़रा भी अनुमान नहीं था कि उनसे मिलकर एक अजीब-सा ठण्डा डर मेरे रोंगटे खड़े करने वाला है। हालाँकि दान सिंह दलाल मेरे साथ था। फिर भी आशंका होने लगी कि कहीं मैं किसी मुसीबत में तो नहीं फँस गया।

...मैंने भीतर घुसते डर को भगाने के लिए दान सिंह की तरफ़ देखा। वह मन्द-मन्द मुस्कुरा रहा था। उसके दोनों होंठ बहुत चौड़े और जबड़ों की ओर खिंचे हुए थे। आँखें बाहर को निकली हुई थीं। यह तो एकदम मेढक जैसा है। इस ओर मेरा ध्यान पहले क्यों नहीं गया,जबकि यह मेरे ही बगल में बैठकर भीमताल से यहाँ तक आया?क्या मैं इसी डरावने आदमी के साथ आया था ?

(शीर्षक कथा : चिट्टी ज़नानियाँसे )


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